शीर्षक - खानाबदोशी एक जगह ज्यादा रूका नहीं जाता यह दिल अब खानाबदोश हो गया है हर किसी पर फिसलता नही है फिर भी ना जाने किस आस ने दिल और दिमाग में बवंडर मचा रखा गावों से शहर शहर से गांव पंगडडी के रास्ते से रेलमार्ग के रास्ते तक घूमता रहता है, गिले में शिकवे में खुद से ही गुफ्तगू करता है यह दिल अब खानाबदोश हो गया है एक जगह ज्यादा रूकता नहीं जाता पत्रकारिता मे डिग्री की है पर खोजी पत्रकार नहीं मेरे ऊपर किसी कंपनी का कोई अधिकार नहीं आज यहाँ हूँ कल वहाँ परसों का कोई ठिकाना नहीं अगर यह दुनिया बेगानी है पर मैं अब्ब्दुला दीवाना नहीं खोजी नहीं पत्रकार नहीं मन मौजी कह देना क्योंकि एक जगह ज्यादा रूका नहीं जाता यह दिल अब खानाबदोश हो गया है लेखक - अघोरी अमली सिंह #amliphilosphy
मैने अपने सपनों की गला घोट कर हत्या की है हां अपनी रूह की आत्महत्या की है अब तुम इसका पोस्टमार्टम नहीं करोगे जिसमें ना जाने कितनी कविता कहानी निकलेंगी सीना चीर चीर निकलती ध्वनियाँ तुम्हारे मस्तिष्क का इलाज करेगी मेरे शरीर के अंतिम नस के अंतिम रक्त में भी कलाकारी ही निकलेंगी पर उसको कला के सौदागरों से बचा के रखना नहीं तो स्वाभिमानी लहू क्रांति करेगा किसी पब्लिशर के हाथ लगा तो वह अमर हो जाएगा मुझे मोक्ष की प्राप्ति होगी जुस्तजू है इस रूह को आजादी मिलेगी अघोरी अमली सिंह ©amlisingh