Skip to main content

चलो कुंभ चले


 यह बात कुछ सदियों पहले शुरू होती  है
जब दो शक्तियों का महायुद्ध होता है
उनको भी नहीं पता होगा
जहाँ जहाँ अमृत की बूंदे गिरी
वहाँ अमृत का मेला
आस्था का महापर्व कुंभ होता है
कुंभ शब्द पवित्र अमृत कलश से व्युत्पन्न हुआ है
तो पुनः वर्तमान मे आते  है
संगम के किनारे  तम्बुओं का शहर बस चुका है
आप सभी के स्वागत के लिए प्रयागराज  तैयार है

सुने अघोरी अमली कुछ कह रहे है
खुद की खोज मे है कोई
तो  कोई प्रभु की  खोज मे
कोई गुरु के पास है
किसी को गुरु की तलाश है
हालत सभी के मेल खाते है
 सभी को मोक्ष प्राप्ति की आस है
यहाँ सभी तर्क वितर्क समाप्त हो जाते है
ना कोई जात है ना कोई पात
यह भारत वर्ष है
जहाँ सारी संस्कृति मिलती है
 मातृभूमि की गौरवगाथा गाती है
कोई घाट पे बैठा साधु प्रोफेसर
तो कोई ज्योतिषशास्त्र का महाज्ञानी
कोई साक्षात् भारत दर्शन है
तो कोई विश्व का ज्ञाता
कोई खेल खेल रहा
तो कोई भविष्य के दर्शन का सेतु निर्माण कर रहा है
वर्तमान मे सभी योद्धा है यहाँ
विज्ञान भी गोता खाता है यहाँ
तपो के तप संगम मे मिल रहे
ज्ञान की नदी माँ सरस्वती वातावरण को शुद्ध कर रही
स्वागत कर रही है आध्यत्मिक चेतना की धरती प्रयागराज आप सभी श्रद्धालुओ का
आए और इस महापर्व के साक्षी बने
हर हर गंगे
हर हर  महादेव 

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

शीर्षक - खानाबदोशी - अघोरी अमली सिंह

     शीर्षक - खानाबदोशी एक जगह ज्यादा रूका नहीं जाता  यह दिल अब खानाबदोश हो गया है हर किसी पर फिसलता नही है फिर भी ना जाने किस आस ने दिल और दिमाग में बवंडर मचा रखा गावों से शहर शहर से गांव पंगडडी के रास्ते से रेलमार्ग के रास्ते तक घूमता रहता है, गिले में शिकवे में खुद से ही गुफ्तगू करता है यह दिल अब खानाबदोश हो गया है एक जगह ज्यादा रूकता नहीं जाता पत्रकारिता मे डिग्री की है पर खोजी पत्रकार नहीं मेरे ऊपर किसी कंपनी का कोई अधिकार नहीं आज यहाँ हूँ कल वहाँ परसों का कोई ठिकाना नहीं अगर यह दुनिया बेगानी है पर मैं अब्ब्दुला दीवाना नहीं खोजी नहीं पत्रकार नहीं मन मौजी कह देना क्योंकि एक जगह ज्यादा रूका नहीं जाता  यह दिल अब खानाबदोश हो गया है लेखक - अघोरी अमली सिंह #amliphilosphy

प्यार का मानसून सत्र भाग -१

आज की शाम  ठंडी ठंडी हवा चल रही थी  मैंने अपनी कुछ  किताबों  को टेबल पर रख  किताब के पनो को पलटना शुरू कर दिया  दिमाग का जंग धीरे धीरे साफ़ हो  रहा  था  की  अचानक तेज़ हवा के झोंके के  साथ  बारिश की बूंदो ने कमरे मे दस्तक दी  खिड़की की और बढ़ा  तो  लगा यह मानसून  धरती की  तपिस  मिटा  रहा है  पहाड़ों पर बिजली का चमकना सोने पे सुहागा सा प्रतीत हो रहा है  जैसे ही  तुम अपनी छत पर आ कर  बरसात का लुफ्त उठा रही  हो  ऐसा लग रहा जैसे किसी ने खाली पड़े गिलास को  शराब से भर दिया हो  नशा तुम्हारा इन  घने बादलों को दिल  खोल  के बरसने को मजबूर कर रहा हो  मानों देवलोक से कोई  उपहार तुम्हरे लिए आ रहा  हो       तुम्हरे कदम मेरी छत की ओर बढ़ना  कुछ अनसुलझे प्रश्नों के जवाव से महसूस हो रहे है  यह भीगा हुआ जिस्म भीषण बाणो सा  दिल पे प्रहार कर रहा है  तुम जो स्पर्श दर स्पर्श  कर  रह...

बचपन की मुस्कान है हिन्दी - अघोरी अमली सिंह

बचपन की मुस्कान है हिन्दी  सपनों की उड़ान है हिन्दी  समस्याओं का समाधान है हिन्दी  बुद्धिजीवियों के   मुँह  पर पूर्णविराम है हिन्दी  मेरा स्वाभिमान है हिन्दी  प्रेम चन्द का गो दान है हिन्दी  राष्ट्रगान की शान है हिन्दी  भारत की पहचान है हिन्दी  बालीवुड की जान है हिन्दी  हिमालय से हिन्द महासागर तक समन्वय  का    सेतु  है हिन्दी   गंगा जैसा वेग समुद्र कि शान्त लहर है हिन्दी  दुश्मन पर प्रहार दोस्ती का व्यवहार है हिन्दी  रावण का ज्ञान श्री राम की पहचान है हिन्दी  मेरी जान है हिन्दी राष्ट्र की स्वाभिमानी पहचान है हिन्दी  बचा लो  इसको  नहीं तो राख  है हिन्दी बचपन की मुस्कान है हिन्दी  सपनों की उड़ान है हिन्दी           - अघोरी अमली सिंह