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Showing posts from 2018

जश्न ए रेख्ता जहां फिजाओं में उर्दू का इशक है - अघोरी अमली सिंह

जश्न ए  रेख्ता उर्दू के इश्क में डूबे दीवानों का मेला है जहां समाज के सभी दरवाजे खुले है एक अपना पन सा है कलाकारों का जमघट है जहां उम्र नहीं सिर्फ दिल के करीब ऊर्दू रखने वाले आशिक है शायरी है किस्से है कहानीया है अल्फ़ाज़ है नज़्मे है किताबें है कलम है कीपैड अनाड़ी है खिलाड़ी  है सहभागी है प्रतिभागी है इकरार है इंकार है यहाँ सिर्फ साहित्य का प्यार है जिसका उर्दू जिगरी यार है आजकल कई नई जोड़ीया भी बन जाती है कोई अकेला आता है कोई खुद की तलाश मे है कोई भंड है किसी के नशे मे किसी को उर्दू मे डूबे लफ़्ज़ों की प्यास है किसी को एहसास है अपनों के आस पास होने का क्योकि वो अपनी मेहबूबा के समीप है उर्दू उसके दिल के करीब है इस उर्दू की आशिकी में डूबे दीवानों की यह पाठशाला मधुशाला बन चुकी जिसमे हर कोई डूबा हुआ यह नशा कम ना हो  पाए यह दीदार खत्म  ना  हो  पाए मिलते रहे हमेशा यही यह जुस्तजू कभी ख़त्म ना हो पाए आभार आभार रेख्ता परिवार यही प्यार हमेशा बरकरार रहे हम रहे ना रहे यह जश्ने रेख्ता  हर बार रहे धन्य है हम जो आपका दीदार हो जाता हम सभी ऊर्दू के दीवानों को मिलवाने के लि

बचपन की मुस्कान है हिन्दी - अघोरी अमली सिंह

बचपन की मुस्कान है हिन्दी  सपनों की उड़ान है हिन्दी  समस्याओं का समाधान है हिन्दी  बुद्धिजीवियों के   मुँह  पर पूर्णविराम है हिन्दी  मेरा स्वाभिमान है हिन्दी  प्रेम चन्द का गो दान है हिन्दी  राष्ट्रगान की शान है हिन्दी  भारत की पहचान है हिन्दी  बालीवुड की जान है हिन्दी  हिमालय से हिन्द महासागर तक समन्वय  का    सेतु  है हिन्दी   गंगा जैसा वेग समुद्र कि शान्त लहर है हिन्दी  दुश्मन पर प्रहार दोस्ती का व्यवहार है हिन्दी  रावण का ज्ञान श्री राम की पहचान है हिन्दी  मेरी जान है हिन्दी राष्ट्र की स्वाभिमानी पहचान है हिन्दी  बचा लो  इसको  नहीं तो राख  है हिन्दी बचपन की मुस्कान है हिन्दी  सपनों की उड़ान है हिन्दी           - अघोरी अमली सिंह

प्यार का मानसून सत्र भाग -१

आज की शाम  ठंडी ठंडी हवा चल रही थी  मैंने अपनी कुछ  किताबों  को टेबल पर रख  किताब के पनो को पलटना शुरू कर दिया  दिमाग का जंग धीरे धीरे साफ़ हो  रहा  था  की  अचानक तेज़ हवा के झोंके के  साथ  बारिश की बूंदो ने कमरे मे दस्तक दी  खिड़की की और बढ़ा  तो  लगा यह मानसून  धरती की  तपिस  मिटा  रहा है  पहाड़ों पर बिजली का चमकना सोने पे सुहागा सा प्रतीत हो रहा है  जैसे ही  तुम अपनी छत पर आ कर  बरसात का लुफ्त उठा रही  हो  ऐसा लग रहा जैसे किसी ने खाली पड़े गिलास को  शराब से भर दिया हो  नशा तुम्हारा इन  घने बादलों को दिल  खोल  के बरसने को मजबूर कर रहा हो  मानों देवलोक से कोई  उपहार तुम्हरे लिए आ रहा  हो       तुम्हरे कदम मेरी छत की ओर बढ़ना  कुछ अनसुलझे प्रश्नों के जवाव से महसूस हो रहे है  यह भीगा हुआ जिस्म भीषण बाणो सा  दिल पे प्रहार कर रहा है  तुम जो स्पर्श दर स्पर्श  कर  रही  हो ,कल्पनाओं  की उड़ान को गति मिल रही है  मस्तिष्क का रुका हुआ जनसंचार पुना सही रूप से कार्य कर रहा है  उलटते पलटते हुए किताब के पने पेज नंबर ५३ पर आ कर रुक गए है  तुमने जो ही मेरे बालों  को  खींचते हुए मेरी ग

शीर्षक - हमारी अयोध्या भाग - 1

                                                      राजनीती  के  चश्मे  को  उतार कर  तो देखो  बाबू                             सरयू  सुनाती  अवध  की  स्वभिमानी  कहानी          जहाँ  दिल दिल  में   बस्ते श्री राम है , घर  घर  श्री  राम   के  धुनि  रमाये  दीवाने                              जिनकी  मेहनत  को  करे  दुनिया  प्रणाम                                     अंधियारे  को  गुम  करती                        श्री  राम  जय  राम जय  जय राम  की  धुन                 अरे कहा पड़े हो मीडिया और राजनीति के चक्कर में।                             कोई नहीं है श्री राम भक्तों के टक्कर में                          जहाँ प्रेम है मर्यादा है तप है आदर्श हैं                              सरयू जिसका रोज सुबह सुबह                      चरण स्पर्श कर स्वाभिमान उदघोष करती हो,                      संतो की वाणी से वातावरण पवित्र हो जाता हो,                                वह नगरी कोई विवादस्पद नहीं,                      हमारे स्वाभिमानी  शौर्य गौरव का प्रतीक है                 

शीर्षक - बुरा हूँ मैं 💯☠️☠️☠️☠️☠️☠️✔️💀💀

 शीर्षक - बुरा हूँ मैं   💯☠️☠️☠️☠️☠️☠️✔️💀💀  यू ही अक्सर सोचता हूँ मैं बहुत ज्यादा गलत हूँ यही सत्य है बहुत बुरा हूँ दूसरे की खुशी में खुश हूँ अपनों की नराजगी से दुख होता है जो समझता नहीं उसको समझाता क्यों हूँ टूटी पड़ी राहों को जोड़ता क्यो हूँ मुझे कभी समझ में नहीं आता है हाँ यह बात सत्य है मै बहुत बुरा हूँ किसी का दर्द देखा नहीं जाता लाख कोशिश करू पर खुद को रोका नहीं जाता हर तरह से प्रयास करता हूँ हां यही सत्य है मै बहुत बुरा हूँ शराब भी पी लेता हूँ थोड़े से आराम के लिए वो भी हराम हो जाता है यादों के बैनर ताले क्या करू बर्दाश्त नहीं होता चिला देता हूं ज्यादा हो तो बाते दाबा देता हूं क्या करू बदनाम हूँ खुद को समझा लेता हूँ श्मशान को देख सारी इच्छा मिटा देता हूं अपनी बुराइयों सुनने से ही सुकून मिलता है क्या करू बुरा हूँ खुद को समझा लेता हूँ समझा लेता हूँ -- अघोरी अमली सिंह - -

रिश्तों का दूसरा नाम ही समझौतें करना है - अघोरी अमली सिंह

                                                                     रिश्तों का दूसरा नाम ही समझौतें करना है                              बहुत कुछ त्याग करना पड़ता है                                    इनको पाने के लिए                           सहमे हुए दिल को समझाना पड़ता है                            आँखों के पानी को छुपाना पड़ता है                                   हर गम भूलना पड़ता है                             कदम से कदम मिलाने के लिए                                 इस दवाखाने में दवाई नहीं                                  मुस्कान मिलती है  साहब                            जो  दिल को  राहत देती जाती है                                   जिंदगी जीने के लिए                       कहे अघोरी अमली  वो रिश्ते रिश्ते नहीं जहॉ                                सम्पति धन का मोह घनघोर हो                                 उनको ध्वस्त करना ही जरुरी है                               कीचड़ मे कमल खिलाने के लिए                दरारों को भर खुशियों से भरा एक आसमान सजाने के लिए          

शहर गुम हो रहा है क्या

                           हाँ  यह सत्य  है                         मेरा  शहर गुम हो  रहा  है                         एक  अंधी  खाई  में ,               कदम  कदम  पे भांति भांति  के चित्र                   ना  जाने  क्या क्या  कहते  है           सुना  है अपने  ही  अपनों  से जंग करते  है                प्राकल्पनाओं के पुल बंधे हुए है               जिसको देख  वास्तिविकता हैरान है              परेशान  यहाँ  कोई किसी से नहीं              परन्तु फिर भी एक  घमासान जारी है             नौजवान यहाँ हाथों में किताबें नहीं                     कट्टे लें कर चलते हैं  सपनों को अपने ही पैरों तले कुचल कुचल कर मजे से चलते है       बेफिक्र उड़ता चिलम का धुँआ आसमान छू रहा है        शमशान में बैठा काला कुत्ता ना जाने क्यों रो रहा है         मैं ठेके से ठंडे पड़े सपनों से भरी बियर लिए बैठा हूँ  सच तो यही है सपनों की नस काट काट कर अपनी ही कब्र में बैठा हूँ                       तभी कह रहा हूँ                       हाँ  यह  सत्य  है                मेरा  शहर गुम हो  रहा  है               

शीर्षक - पानी है तो जहान है

picture source- aajtak media शीर्षक - पानी है  तो जहान है   देखों भैया सुनो हमाई कब तक देबी मौसम की दुहाई जो काल बोहताई भारी पड़ रहो जीगर कलेजा अपनों बर रहो सूखो पड़ो जो अपनों जग मानस कहूँ और जावे को मन नाहि बड़े बड़े बोल बोल गए नेता सबरे पापड़ तोल गए जेता कछु समझ अब और ना आ रहो कोनू राह नजर ना आ रई आत्मा सूखत ही जा रई दूर दूर   तक  ना बदली छाई कैसे हो है ई बार बिवाई जो बात बी दिमाग खा रई पानी के लाने भी हो रही लड़ाई कौनू धरे है कट्टा बैठो कौनू लए तलवार जो नीर के चक्कर में अब होने का आर पार, रूको भैया सुनो हमाई बिन पानी है सब बेकार समय रहे समझलो जल्दी नहीं अपने चल पड़े बा पार सब कछु हो जाने बेकार सूखो पड़ो जो पीपल अपनों झड पड़ो है जंगल सारो तानिक तो करो विचार अघोरी अमली करे जन जन से यही पुकार तानिक करो विचार -अघोरी अमली सिंह #amliphilosophy #bundeli

आत्मसंवाद

प्र कृति से प्रेम करो  दुर्व्यवहार नहीं,            यह  ठंडी हवायें , न जाने कितने प्रश्नों  को  हल कर रही  है   ,          बिजली का प्रकाश   नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर   रही  है  यह प्रकृतिक भांग साँसों को थामा रही है   मन की गंदगी साफ कर रही है  माफ कर रही गलतियों को,  सावधान कर समाधान कर रही है  , दिमाग की अंतिम नस नस में जो रक्त संचार हो रहा है  यह हरियाली उसको ताजा कर रही है  भविष्य की उलझी राहों को साफ कर रही है   वर्तमान में ध्यान केंद्रित करने का मन कार्य कर रहा है , बिना रुके यह स्याही निरन्तर लक्ष्य की ओर बढ़ती जा रही है , पुरानी यादों के झरोखे से कुछ शब्द पलों की आकाश गंगा का निर्माण कार्य में लगे हुए हैं  परन्तु  वक्त के साथ चलने में ही भलाई है , क्योंकि हर बार रुकने पर  कारवाह   आगे निकल जाता है   जो मन को रास नहीं आता है।    चलो  हो गया समाधान  , निरंतर  चल रही मेरी कलम  कर रही , सारे चूतियापो का कत्लेआम है,  समझों   तो  है  ज्ञान  नहीं  तो  लगा  दो  पूर्णविराम  अब यही  देता  हूँ , आत्मसवांद को थोड़ा  विश्राम        ॐ शान्ति शान्ति शान्ति   -     

शीर्षक - चिंताओं से चिता तक

बचपन सदैव बहुत शानदार होता है  तब आपको ज्यादा   दुनिया का पता नहीं होता  मन भी शांत रहता है  धीरे धीरे आप विघालय में प्रवेश करते हैं , वहाँ से जीवन का नया  अध्याय शुरू होता है,  नये मित्र जो जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन करते हैं , घर वालों के मस्तिष्क में ख्याली पुलाव पकने लगते हैं  हमारा लड़का, बिटिया भी शर्मा जी ,कपूर जी ,प्रधान साहब के  बच्चों की तरह सरकारी नौकरी पा लेगें सुखद जीवन चलता रहेगा   एक तरफ घर परिवार बिल्कुल सही सोचकर फैसले लेते हैं  परन्तु दूसरी तरफ कुछ और ही घमासान मस्तिष्क में उत्पात मचा रहा होता है   स्कूल से महाविद्यालय तक का सफर धीर धीरे पार हो जाता है  समय की गति भी अपनी रफ्तार से चल रही होती है  इस गति में आपके मित्र भी अच्छी नौकरियों पाकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं , पर जैसे ही वो आपके घर आते हैं या किसी के संपर्क में आ कर उपलब्धियों के किस्सों का प्रसारण करते हैं , वेसे ही विभिन्न प्रकार की सुन्दर सुंदर टिप्पणीयों की बारिश आप पर होने लगती है  इस समय आप सहम ही जाते हो मन ही मन एक और नया युद्ध की शुरुआत होती

एक खत भाई को

शीर्षक - एक खत भाई को  तुमको पता है भाई एक साल बीतने को है जख्म अभी भी भरा नहीं कभी भरेंगा भी नहीं दिमाग सब समझता है बीता वक्त वापिस नहीं आयेगा परंतु  इस पापी दिल को कुछ समझ में नहीं आता है  वो हर खुशी और गम में तुमको याद करता है  क्योंकि तुम दिल में हो और दिल जब तलक धड़कता रहेगा तुम याद आते रहोगे कभी कभी बहुत ज्यादा नाराजगी खुद से भी होती है  ऐसा समय आ कैसे गया हो कैसे गया एक बार कुछ कहा तो  होता पर फिर हो सकता है  कुछ कहना चाहते हो पर कह ना सके या कहा तो हम समझ ना सके यह प्रश्नोत्तर दिमाग को झकड लेते हैं अक्सर जब भी घर जाना होता है तब तक तो सब ठीक रहता है जैसे ही तुम्हारे घर तरफ नजर जाती है यहीं सब बातें यादें दिमाग को जकड़ लेतीं हैं फिर ना जाने क्यों लगता है तुम्हारा तुरंत काॅल आयेगा,  आओ भाई कही चलते हैं घूमते हैं चर्चा करते हैं तुम ही तो कहते हो ना कि भाई तुम कुछ करते क्यों नहीं हो तुम आगे बढ़ो अच्छा लगता है, भाई कसम से जिस दिन रफ्तार भाई जी के साथ शो किया था उस समय यही दिल बोल रहा था भाई यह शो तेरे लिए है आने वाले हर सुनहरे पल तुम्हारे लिए पर तुम स