
मेरा शहर गुम हो रहा है
एक अंधी खाई में ,
कदम कदम पे भांति भांति के चित्र
ना जाने क्या क्या कहते है
सुना है अपने ही अपनों से जंग करते है
प्राकल्पनाओं के पुल बंधे हुए है
जिसको देख वास्तिविकता हैरान है
परेशान यहाँ कोई किसी से नहीं
परन्तु फिर भी एक घमासान जारी है
नौजवान यहाँ हाथों में किताबें नहीं
कट्टे लें कर चलते हैं
सपनों को अपने ही पैरों तले कुचल कुचल कर मजे से चलते है
बेफिक्र उड़ता चिलम का धुँआ आसमान छू रहा है
शमशान में बैठा काला कुत्ता ना जाने क्यों रो रहा है
मैं ठेके से ठंडे पड़े सपनों से भरी बियर लिए बैठा हूँ
सच तो यही है सपनों की नस काट काट कर अपनी ही कब्र में बैठा हूँ
तभी कह रहा हूँ
हाँ यह सत्य है
मेरा शहर गुम हो रहा है
एक अंधी खाई में
कौन इसको बचाता है
कौन शमिल है इस तबाही मे
ना जाने कौन सी दौड़ लगी
जिसको सभी जीतना चाहते है
वास्तवकिता तभी दफ़न हो गई है गहरी खाई मे
इंसानियत की अहंकार से जंग सदियों से जारी है
इस वक़्त के तराजू पे
अफ़साने बहुत भारी है बहुत भारी है ....
अघोरी अमली सिंह
बहुत शानदार
ReplyDeleteNice.....bro... Keep it up...
ReplyDeleteBeautiful lines ji
ReplyDeleteसत्य
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