कल तक जो मैं लिखता था
आजकल बिल्कुल नही लिखता
कुछ तो है ऐसा की खों सा गया
जैसे धतूरा पी के सो सा गया हूँ
नींद खुलने का नाम नही ले रही है
सपनों की नगरी में खों सा गया हूँ
कलम की सयाही मेरे खून मे लिप्त
जैसे इस कांच के गिलास मे पढ़ी शराब
मेरा दिमाग पूरा खराब ,
सवाल जवाब का दौर ऐसा
जैसे मेरे ऊपर लटकी ज़हरीली तलवार
हाल बेहाल इस रूह को ना जाने
किस की आस यही बात मेरे मालिक
मुझे आए ना रास दिखा दे रब्बा
अब वो रास्ता कब तक लिखूगा
मै गुनाहों की दस्ता
अघोरी अमली सिंह
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