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सवाल जवाब का दौर

कल तक जो मैं  लिखता था
आजकल बिल्कुल नही लिखता
कुछ तो है ऐसा की खों सा गया
जैसे धतूरा पी के सो सा गया हूँ
नींद खुलने का नाम नही ले रही है
सपनों की नगरी में खों सा गया हूँ
कलम की सयाही मेरे खून मे लिप्त
जैसे इस कांच के गिलास मे पढ़ी शराब
मेरा दिमाग पूरा खराब ,
सवाल जवाब का दौर ऐसा
जैसे मेरे ऊपर लटकी ज़हरीली तलवार
हाल बेहाल इस रूह को ना जाने
किस की आस यही बात मेरे मालिक
मुझे आए ना रास दिखा दे रब्बा
अब वो रास्ता कब तक लिखूगा
मै गुनाहों की दस्ता 
अघोरी अमली  सिंह 

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स्वर्ग मे क्रांतिकारियों का मिलन

भगत  सिंह  जी ने  पिस्तौल की गोलियाँ निकाल कर   टेबल  पर रख  दी जोर जोर  से हसने लगे , बोले  देखों  सुखदेव राजगुरु हमारे वतन के हालत  तो  देखो  जरा  क्या  तुम दोनों  भी  वही  सोच  रहे  हो जो  मैं  सोच  रहा  हूँ हमारे सपनों के आजाद  भारत का चित्र तो जल कर खाक सा हो पड़ा है हर रोज कोई ना कोई उसको रोंदते जाता है हम जिस एकता के लिए लड़े मिटे कुर्बान हो गए वह तो आज खंडित नजर आ  रही है वही जात पात भेदभाव अपनी चरम सीमा पर है हमारा लाहौर जहाँ हम पढ़े लिखे लालाजी जहाँ शहादत हुई वह अब दूसरा मुल्क हो गया कितनी शर्म की बात है कुर्सी पाने की चाह  ने हमारे वतन इ हिन्द को दो भागों मे विभाजित कर दिया। ... तभी सुखदेव  बोले भगत यह तो कुछ  नहीं है कही भाषा की आग है कही क्षेत्रवाद की बहुत कुछ जल के राख हो चुका है नेता बढ़ते जा रहे है समसयाओ का समाधान नहीं हो रहा है तभी भगत सिंह पुनः पिस्तौल मे गोलियां भरना शुरू करते है राजगुरु उनको रुकने को कहते है और बोलते है कुछ लोगो ने राष्ट्र को खोखला कर  दिया है भगत हमारे नामों का भी भरपूर उपयोग किया है सभी अपनी राजनितिक रोटियां सेक

शीर्षक - बुरा हूँ मैं 💯☠️☠️☠️☠️☠️☠️✔️💀💀

 शीर्षक - बुरा हूँ मैं   💯☠️☠️☠️☠️☠️☠️✔️💀💀  यू ही अक्सर सोचता हूँ मैं बहुत ज्यादा गलत हूँ यही सत्य है बहुत बुरा हूँ दूसरे की खुशी में खुश हूँ अपनों की नराजगी से दुख होता है जो समझता नहीं उसको समझाता क्यों हूँ टूटी पड़ी राहों को जोड़ता क्यो हूँ मुझे कभी समझ में नहीं आता है हाँ यह बात सत्य है मै बहुत बुरा हूँ किसी का दर्द देखा नहीं जाता लाख कोशिश करू पर खुद को रोका नहीं जाता हर तरह से प्रयास करता हूँ हां यही सत्य है मै बहुत बुरा हूँ शराब भी पी लेता हूँ थोड़े से आराम के लिए वो भी हराम हो जाता है यादों के बैनर ताले क्या करू बर्दाश्त नहीं होता चिला देता हूं ज्यादा हो तो बाते दाबा देता हूं क्या करू बदनाम हूँ खुद को समझा लेता हूँ श्मशान को देख सारी इच्छा मिटा देता हूं अपनी बुराइयों सुनने से ही सुकून मिलता है क्या करू बुरा हूँ खुद को समझा लेता हूँ समझा लेता हूँ -- अघोरी अमली सिंह - -

पतंगों पे भारी मोबाइल की गुंडाई

 पंतगो पर मोबाइल की गुंडाई चल रही है  इककी दुककी दलेर ही दिख रही है बाकि सब मोबाइल ने काट दी है आओ पेंच लड़ाए के  स्थान को  पब जी ने कब्ज़ा लिया है गलियों  मे पतंग लूटने वाले लौंडे व्हाट्सप्प इंस्टा पर लौंडिया पटाने मे लगे हुए है उनको नहीं पता की उनकी आशिक़ी की पतंग इस बसंत मे कोई और ही कटाने वाला है सोशल मीडिया पर बढ़ती आशिक़ो की आबादी सिर्फ पेंच लड़ते देखेंगी पर पेंच लड़ा नहीं पायेगी उनके दिमाग पर चिकन डिनर का खौफ जो मंडरा रहा है कहते है ना अल्ताफ राजा वो साल दूसरा था ये साल दूसरा है वो प्यार का साल  दूसरा था ये दौर दूसरा  है उसकी छत पर गिरती पतंगों को लूटना उसका आँखों से दिल पे वार दिल की उमगों को इश्क की हवा मे  ढील देने का दौर दूसरा था अब तो ब्यूटीप्लस के हवाले से झांकी बनाने का दौर है इतने फिलटर आ गए है कसम से इतने तो पानी साफ़ करने वाली मशीनो मे नहीं है तो कौन गिरला मांजा  लाएगा जब चिलम गांजा से काम चल रहा है अबे अब कौन पतंग उड़ाए गए गा जब पब जी से काम चल रहा है अब कौन पेंच लड़ायेगा जब इंस्टा व्हाट्सप्प पर प्यार का घमासान चल रहा है पतंगों पर मोबाइल ने चौतरफा