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शीर्षक - खानाबदोशी - अघोरी अमली सिंह

     शीर्षक - खानाबदोशी एक जगह ज्यादा रूका नहीं जाता  यह दिल अब खानाबदोश हो गया है हर किसी पर फिसलता नही है फिर भी ना जाने किस आस ने दिल और दिमाग में बवंडर मचा रखा गावों से शहर शहर से गांव पंगडडी के रास्ते से रेलमार्ग के रास्ते तक घूमता रहता है, गिले में शिकवे में खुद से ही गुफ्तगू करता है यह दिल अब खानाबदोश हो गया है एक जगह ज्यादा रूकता नहीं जाता पत्रकारिता मे डिग्री की है पर खोजी पत्रकार नहीं मेरे ऊपर किसी कंपनी का कोई अधिकार नहीं आज यहाँ हूँ कल वहाँ परसों का कोई ठिकाना नहीं अगर यह दुनिया बेगानी है पर मैं अब्ब्दुला दीवाना नहीं खोजी नहीं पत्रकार नहीं मन मौजी कह देना क्योंकि एक जगह ज्यादा रूका नहीं जाता  यह दिल अब खानाबदोश हो गया है लेखक - अघोरी अमली सिंह #amliphilosphy
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आत्महत्या - अघोरी अमली सिंह

मैने  अपने सपनों की गला घोट कर हत्या की है हां अपनी रूह की आत्महत्या की है अब तुम इसका पोस्टमार्टम नहीं  करोगे  जिसमें ना जाने कितनी कविता कहानी निकलेंगी सीना चीर चीर निकलती ध्वनियाँ तुम्हारे मस्तिष्क का इलाज करेगी मेरे शरीर के अंतिम नस के  अंतिम रक्त में भी कलाकारी ही निकलेंगी पर उसको कला के सौदागरों से बचा के रखना नहीं तो स्वाभिमानी लहू क्रांति करेगा  किसी पब्लिशर के हाथ लगा तो  वह अमर हो जाएगा  मुझे मोक्ष की प्राप्ति होगी  जुस्तजू है इस रूह को आजादी मिलेगी अघोरी अमली सिंह ©amlisingh

स्वर्ग मे क्रांतिकारियों का मिलन

भगत  सिंह  जी ने  पिस्तौल की गोलियाँ निकाल कर   टेबल  पर रख  दी जोर जोर  से हसने लगे , बोले  देखों  सुखदेव राजगुरु हमारे वतन के हालत  तो  देखो  जरा  क्या  तुम दोनों  भी  वही  सोच  रहे  हो जो  मैं  सोच  रहा  हूँ हमारे सपनों के आजाद  भारत का चित्र तो जल कर खाक सा हो पड़ा है हर रोज कोई ना कोई उसको रोंदते जाता है हम जिस एकता के लिए लड़े मिटे कुर्बान हो गए वह तो आज खंडित नजर आ  रही है वही जात पात भेदभाव अपनी चरम सीमा पर है हमारा लाहौर जहाँ हम पढ़े लिखे लालाजी जहाँ शहादत हुई वह अब दूसरा मुल्क हो गया कितनी शर्म की बात है कुर्सी पाने की चाह  ने हमारे वतन इ हिन्द को दो भागों मे विभाजित कर दिया। ... तभी सुखदेव  बोले भगत यह तो कुछ  नहीं है कही भाषा की आग है कही क्षेत्रवाद की बहुत कुछ जल के राख हो चुका है नेता बढ़ते जा रहे है समसयाओ का समाधान नहीं हो रहा है तभी भगत सिंह पुनः पिस्तौल मे गोलियां भरना शुरू करते है राजगुरु उनको रुकने को कहते है और बोलते है कुछ लोगो ने राष्ट्र को खोखला कर  दिया है भगत हमारे नामों का भी भरपूर उपयोग किया है सभी अपनी राजनितिक रोटियां सेक

सवाल जवाब का दौर

कल तक जो  मैं   लिखता था आजकल बिल्कुल नही लिखता कुछ तो है ऐसा की खों सा गया जैसे धतूरा पी के सो सा गया हूँ नींद खुलने का नाम नही ले रही है सपनों की नगरी में खों सा गया हूँ कलम की सयाही मेरे खून मे लिप्त जैसे इस कांच के गिलास मे पढ़ी शराब मेरा दिमाग पूरा खराब , सवाल जवाब का दौर ऐसा जैसे मेरे ऊपर लटकी ज़हरीली तलवार हाल बेहाल इस रूह को ना जाने किस की आस यही बात मेरे मालिक मुझे आए ना रास दिखा दे रब्बा अब वो रास्ता कब तक लिखूगा मै गुनाहों की दस्ता  अघोरी अमली  सिंह 

पतंगों पे भारी मोबाइल की गुंडाई

 पंतगो पर मोबाइल की गुंडाई चल रही है  इककी दुककी दलेर ही दिख रही है बाकि सब मोबाइल ने काट दी है आओ पेंच लड़ाए के  स्थान को  पब जी ने कब्ज़ा लिया है गलियों  मे पतंग लूटने वाले लौंडे व्हाट्सप्प इंस्टा पर लौंडिया पटाने मे लगे हुए है उनको नहीं पता की उनकी आशिक़ी की पतंग इस बसंत मे कोई और ही कटाने वाला है सोशल मीडिया पर बढ़ती आशिक़ो की आबादी सिर्फ पेंच लड़ते देखेंगी पर पेंच लड़ा नहीं पायेगी उनके दिमाग पर चिकन डिनर का खौफ जो मंडरा रहा है कहते है ना अल्ताफ राजा वो साल दूसरा था ये साल दूसरा है वो प्यार का साल  दूसरा था ये दौर दूसरा  है उसकी छत पर गिरती पतंगों को लूटना उसका आँखों से दिल पे वार दिल की उमगों को इश्क की हवा मे  ढील देने का दौर दूसरा था अब तो ब्यूटीप्लस के हवाले से झांकी बनाने का दौर है इतने फिलटर आ गए है कसम से इतने तो पानी साफ़ करने वाली मशीनो मे नहीं है तो कौन गिरला मांजा  लाएगा जब चिलम गांजा से काम चल रहा है अबे अब कौन पतंग उड़ाए गए गा जब पब जी से काम चल रहा है अब कौन पेंच लड़ायेगा जब इंस्टा व्हाट्सप्प पर प्यार का घमासान चल रहा है पतंगों पर मोबाइल ने चौतरफा

चलो कुंभ चले

 यह बात कुछ सदियों पहले शुरू होती  है जब दो शक्तियों का महायुद्ध होता है उनको भी नहीं पता होगा जहाँ जहाँ अमृत की बूंदे गिरी वहाँ अमृत का मेला आस्था का महापर्व कुंभ होता है कुंभ शब्द पवित्र अमृत कलश से व्युत्पन्न हुआ है तो पुनः वर्तमान मे आते  है संगम के किनारे  तम्बुओं का शहर बस चुका है आप सभी के स्वागत के लिए प्रयागराज  तैयार है सुने अघोरी अमली कुछ कह रहे है खुद की खोज मे है कोई तो  कोई प्रभु की  खोज मे कोई गुरु के पास है किसी को गुरु की तलाश है हालत सभी के मेल खाते है  सभी को मोक्ष प्राप्ति की आस है यहाँ सभी तर्क वितर्क समाप्त हो जाते है ना कोई जात है ना कोई पात यह भारत वर्ष है जहाँ सारी संस्कृति मिलती है  मातृभूमि की गौरवगाथा गाती है कोई घाट पे बैठा साधु प्रोफेसर तो कोई ज्योतिषशास्त्र का महाज्ञानी कोई साक्षात् भारत दर्शन है तो कोई विश्व का ज्ञाता कोई खेल खेल रहा तो कोई भविष्य के दर्शन का सेतु निर्माण कर रहा है वर्तमान मे सभी योद्धा है यहाँ विज्ञान भी गोता खाता है यहाँ तपो के तप संगम मे मिल रहे ज्ञान की नदी माँ सरस्वती वातावरण को शुद्ध कर रही स्वा

जश्न ए रेख्ता जहां फिजाओं में उर्दू का इशक है - अघोरी अमली सिंह

जश्न ए  रेख्ता उर्दू के इश्क में डूबे दीवानों का मेला है जहां समाज के सभी दरवाजे खुले है एक अपना पन सा है कलाकारों का जमघट है जहां उम्र नहीं सिर्फ दिल के करीब ऊर्दू रखने वाले आशिक है शायरी है किस्से है कहानीया है अल्फ़ाज़ है नज़्मे है किताबें है कलम है कीपैड अनाड़ी है खिलाड़ी  है सहभागी है प्रतिभागी है इकरार है इंकार है यहाँ सिर्फ साहित्य का प्यार है जिसका उर्दू जिगरी यार है आजकल कई नई जोड़ीया भी बन जाती है कोई अकेला आता है कोई खुद की तलाश मे है कोई भंड है किसी के नशे मे किसी को उर्दू मे डूबे लफ़्ज़ों की प्यास है किसी को एहसास है अपनों के आस पास होने का क्योकि वो अपनी मेहबूबा के समीप है उर्दू उसके दिल के करीब है इस उर्दू की आशिकी में डूबे दीवानों की यह पाठशाला मधुशाला बन चुकी जिसमे हर कोई डूबा हुआ यह नशा कम ना हो  पाए यह दीदार खत्म  ना  हो  पाए मिलते रहे हमेशा यही यह जुस्तजू कभी ख़त्म ना हो पाए आभार आभार रेख्ता परिवार यही प्यार हमेशा बरकरार रहे हम रहे ना रहे यह जश्ने रेख्ता  हर बार रहे धन्य है हम जो आपका दीदार हो जाता हम सभी ऊर्दू के दीवानों को मिलवाने के लि