Skip to main content

बचपन की मुस्कान है हिन्दी - अघोरी अमली सिंह



बचपन की मुस्कान है हिन्दी 
सपनों की उड़ान है हिन्दी 
समस्याओं का समाधान है हिन्दी 
बुद्धिजीवियों के  मुँह पर पूर्णविराम है हिन्दी 
मेरा स्वाभिमान है हिन्दी 
प्रेम चन्द का गो दान है हिन्दी 
राष्ट्रगान की शान है हिन्दी 
भारत की पहचान है हिन्दी 
बालीवुड की जान है हिन्दी 
हिमालय से हिन्द महासागर तक समन्वय का  सेतु है हिन्दी  
गंगा जैसा वेग समुद्र कि शान्त लहर है हिन्दी 
दुश्मन पर प्रहार दोस्ती का व्यवहार है हिन्दी 
रावण का ज्ञान श्री राम की पहचान है हिन्दी 
मेरी जान है हिन्दी राष्ट्र की स्वाभिमानी पहचान है हिन्दी
 बचा लो इसको नहीं तो राख है हिन्दी
बचपन की मुस्कान है हिन्दी 
सपनों की उड़ान है हिन्दी 
         - अघोरी अमली सिंह

Comments

  1. Ultimate yr ,
    You are a awesome writer too....
    Mind blowing 👏👏👏👏👌👍

    ReplyDelete
  2. आ से अनपढ़ ज्ञा से ज्ञान है हिन्दी !
    सुंदर लेखन ✍️

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

प्यार का मानसून सत्र भाग -१

आज की शाम  ठंडी ठंडी हवा चल रही थी  मैंने अपनी कुछ  किताबों  को टेबल पर रख  किताब के पनो को पलटना शुरू कर दिया  दिमाग का जंग धीरे धीरे साफ़ हो  रहा  था  की  अचानक तेज़ हवा के झोंके के  साथ  बारिश की बूंदो ने कमरे मे दस्तक दी  खिड़की की और बढ़ा  तो  लगा यह मानसून  धरती की  तपिस  मिटा  रहा है  पहाड़ों पर बिजली का चमकना सोने पे सुहागा सा प्रतीत हो रहा है  जैसे ही  तुम अपनी छत पर आ कर  बरसात का लुफ्त उठा रही  हो  ऐसा लग रहा जैसे किसी ने खाली पड़े गिलास को  शराब से भर दिया हो  नशा तुम्हारा इन  घने बादलों को दिल  खोल  के बरसने को मजबूर कर रहा हो  मानों देवलोक से कोई  उपहार तुम्हरे लिए आ रहा  हो       तुम्हरे कदम मेरी छत की ओर बढ़ना  कुछ अनसुलझे प्रश्नों के जवाव से महसूस हो रहे है  यह भीगा हुआ जिस्म भीषण बाणो सा  दिल पे प्रहार कर रहा है  तुम जो स्पर्श दर स्पर्श  कर  रह...

बचा ले खुद को योग पर आधारित कविता - अघोरी अमली सिंह

कुछ करों अब खुद को बचाने कों आत्म चिंतन खुद को जगाने को रोगों को दूर भगाने को अंदर का शेर जगाने को चलो चलो चलो चलो सूर्य नमस्कार करो करो प्राणायाम अनुलोम विलोम , कपाल भारती करेगी तेरा कल्याण बचा ले बचा ले खुद को तू बचा ले गिर मत बंदे खुद को तू उठा ले मानसिकता को बदलकर मॉसपैसियो की थकान मिटा ले जीवन को अंतरात्मा से मिला ले बचा ले बचा ले  खुद को तू बचाले  लेखक - अघोरी अमली सिंह

शीर्षक - खानाबदोशी - अघोरी अमली सिंह

     शीर्षक - खानाबदोशी एक जगह ज्यादा रूका नहीं जाता  यह दिल अब खानाबदोश हो गया है हर किसी पर फिसलता नही है फिर भी ना जाने किस आस ने दिल और दिमाग में बवंडर मचा रखा गावों से शहर शहर से गांव पंगडडी के रास्ते से रेलमार्ग के रास्ते तक घूमता रहता है, गिले में शिकवे में खुद से ही गुफ्तगू करता है यह दिल अब खानाबदोश हो गया है एक जगह ज्यादा रूकता नहीं जाता पत्रकारिता मे डिग्री की है पर खोजी पत्रकार नहीं मेरे ऊपर किसी कंपनी का कोई अधिकार नहीं आज यहाँ हूँ कल वहाँ परसों का कोई ठिकाना नहीं अगर यह दुनिया बेगानी है पर मैं अब्ब्दुला दीवाना नहीं खोजी नहीं पत्रकार नहीं मन मौजी कह देना क्योंकि एक जगह ज्यादा रूका नहीं जाता  यह दिल अब खानाबदोश हो गया है लेखक - अघोरी अमली सिंह #amliphilosphy