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आत्मसंवाद

प्रकृति से प्रेम करो  दुर्व्यवहार नहीं, 
          यह  ठंडी हवायें ,
न जाने कितने प्रश्नों को हल कर रही है  ,
         बिजली का प्रकाश 
 नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर  रही है 
यह प्रकृतिक भांग साँसों को थामा रही है  
मन की गंदगी साफ कर रही है 
माफ कर रही गलतियों को, 
सावधान कर समाधान कर रही है  ,
दिमाग की अंतिम नस नस में जो रक्त संचार हो रहा है
 यह हरियाली उसको ताजा कर रही है 
भविष्य की उलझी राहों को साफ कर रही है 
वर्तमान में ध्यान केंद्रित करने का मन कार्य कर रहा है ,
बिना रुके यह स्याही निरन्तर लक्ष्य की ओर बढ़ती जा रही है ,
पुरानी यादों के झरोखे से कुछ शब्द पलों की आकाश गंगा का निर्माण कार्य में लगे हुए हैं 
परन्तु वक्त के साथ चलने में ही भलाई है ,
क्योंकि हर बार रुकने पर कारवाह  आगे निकल जाता है 
 जो मन को रास नहीं आता है। 
 चलो हो गया समाधान  ,
निरंतर चल रही मेरी कलम कर रही ,सारे चूतियापो का कत्लेआम है, 
समझों   तो  है  ज्ञान  नहीं  तो  लगा  दो  पूर्णविराम 
अब यही  देता  हूँ ,आत्मसवांद को थोड़ा  विश्राम
       ॐ शान्ति शान्ति शान्ति 
 -       अघोरी अमली सिंह


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