आज की शाम ठंडी ठंडी हवा चल रही थी मैंने अपनी कुछ किताबों को टेबल पर रख किताब के पनो को पलटना शुरू कर दिया दिमाग का जंग धीरे धीरे साफ़ हो रहा था की अचानक तेज़ हवा के झोंके के साथ बारिश की बूंदो ने कमरे मे दस्तक दी खिड़की की और बढ़ा तो लगा यह मानसून धरती की तपिस मिटा रहा है पहाड़ों पर बिजली का चमकना सोने पे सुहागा सा प्रतीत हो रहा है जैसे ही तुम अपनी छत पर आ कर बरसात का लुफ्त उठा रही हो ऐसा लग रहा जैसे किसी ने खाली पड़े गिलास को शराब से भर दिया हो नशा तुम्हारा इन घने बादलों को दिल खोल के बरसने को मजबूर कर रहा हो मानों देवलोक से कोई उपहार तुम्हरे लिए आ रहा हो तुम्हरे कदम मेरी छत की ओर बढ़ना कुछ अनसुलझे प्रश्नों के जवाव से महसूस हो रहे है यह भीगा हुआ जिस्म भीषण बाणो सा दिल पे प्रहार कर रहा है तुम जो स्पर्श दर स्पर्श कर रह...
मै अघोर हूँ किस्से कहानिया सुनता हूँ मन हो तो कुछ लिख देता हूँ