हाँ यह सत्य है मेरा शहर गुम हो रहा है एक अंधी खाई में , कदम कदम पे भांति भांति के चित्र ना जाने क्या क्या कहते है सुना है अपने ही अपनों से जंग करते है प्राकल्पनाओं के पुल बंधे हुए है जिसको देख वास्तिविकता हैरान है परेशान यहाँ कोई किसी से नहीं ...
मै अघोर हूँ किस्से कहानिया सुनता हूँ मन हो तो कुछ लिख देता हूँ