जश्न ए रेख्ता उर्दू के इश्क में डूबे दीवानों का मेला है जहां समाज के सभी दरवाजे खुले है एक अपना पन सा है कलाकारों का जमघट है जहां उम्र नहीं सिर्फ दिल के करीब ऊर्दू रखने वाले आशिक है शायरी है किस्से है कहानीया है अल्फ़ाज़ है नज़्मे है किताबें है कलम है कीपैड अनाड़ी है खिलाड़ी है सहभागी है प्रतिभागी है इकरार है इंकार है यहाँ सिर्फ साहित्य का प्यार है जिसका उर्दू जिगरी यार है आजकल कई नई जोड़ीया भी बन जाती है कोई अकेला आता है कोई खुद की तलाश मे है कोई भंड है किसी के नशे मे किसी को उर्दू मे डूबे लफ़्ज़ों की प्यास है किसी को एहसास है अपनों के आस पास होने का क्योकि वो अपनी मेहबूबा के समीप है उर्दू उसके दिल के करीब है इस उर्दू की आशिकी में डूबे दीवानों की यह पाठशाला मधुशाला बन चुकी जिसमे हर कोई डूबा हुआ यह नशा कम ना हो पाए यह दीदार खत्म ना हो पाए मिलते रहे हमेशा यही यह जुस्तजू कभी ख़त्म ना हो पाए आभार आभार रेख्ता परिवार यही प्यार हमेशा बरकरार रहे हम रहे ना रहे यह जश्ने रेख्ता हर बार रहे धन्य है हम जो आपका दीदार हो जाता ह...
मै अघोर हूँ किस्से कहानिया सुनता हूँ मन हो तो कुछ लिख देता हूँ